Vocal for Local: 5 साल का रिपोर्ट कार्ड - राष्ट्रवाद की लहर या आर्थिक हकीकत?
Vocal for Local: 5 साल का रिपोर्ट कार्ड - राष्ट्रवाद की लहर या आर्थिक हकीकत?
लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025
2020 में जब COVID-19 महामारी और सीमा पर तनाव के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया, तो "Vocal for Local" एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गया। इसका मकसद था भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना और विदेशी, खासकर चीनी, उत्पादों पर निर्भरता कम करना। आज, 5 साल बाद, यह सवाल पूछना लाज़मी है: क्या यह अभियान सिर्फ एक भावनात्मक नारा बनकर रह गया या इसने वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदली है? आइए, इसका एक निष्पक्ष रिपोर्ट कार्ड देखते हैं।
विषय-सूची (Table of Contents)
- सफलताएँ: कहाँ-कहाँ चमका 'आत्मनिर्भर भारत'?
- चुनौतियाँ: क्यों अधूरी है आत्मनिर्भरता की कहानी?
- संरक्षणवाद बनाम प्रतिस्पर्धा: एक मुश्किल सवाल
- चीन फैक्टर: क्या हम सच में निर्भरता कम कर पाए?
- निष्कर्ष: सफर अभी बाकी है
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. सफलताएँ: कहाँ-कहाँ चमका 'आत्मनिर्भर भारत'?
इसमें कोई शक नहीं कि इस अभियान ने कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है।
- बदली उपभोक्ता की सोच: इस अभियान ने भारतीय उपभोक्ताओं के बीच एक जागरूकता पैदा की। लोग अब 'मेड इन इंडिया' टैग को पहले से ज़्यादा महत्व दे रहे हैं, जिससे स्थानीय कारीगरों और छोटे ब्रांड्स को फायदा हुआ है।
- PLI स्कीम्स का कमाल: सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम्स ने मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा और डिफेंस जैसे क्षेत्रों में क्रांति ला दी है। आज Apple और Samsung जैसी कंपनियाँ भारत में अपने सबसे एडवांस फोन बना रही हैं। खिलौना उद्योग में भी चीन का दबदबा कम हुआ है।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम में उछाल: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब बन गया है। इस मिशन ने भारतीय इनोवेटर्स को प्रोत्साहित किया है और उन्हें वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई है।
2. चुनौतियाँ: क्यों अधूरी है आत्मनिर्भरता की कहानी?
सफलताओं के बावजूद, कई गंभीर चुनौतियाँ हैं जो आत्मनिर्भरता की राह में बाधा बनी हुई हैं।
- संसाधनों की कमी: छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs) के पास आज भी आधुनिक तकनीक, सस्ता कर्ज और वैश्विक बाजार तक पहुँच की कमी है। सरकारी योजनाएँ अक्सर फाइलों में दबकर रह जाती हैं।
- कच्चे माल पर निर्भरता: हम भले ही भारत में फोन असेंबल कर रहे हों, लेकिन उसके अंदर लगने वाली चिप, डिस्प्ले और बैटरी आज भी काफी हद तक आयात होती है। फार्मा सेक्टर में भी हम एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (APIs) के लिए चीन पर निर्भर हैं।
3. संरक्षणवाद बनाम प्रतिस्पर्धा: एक मुश्किल सवाल
आलोचकों का एक बड़ा तर्क यह है कि 'आत्मनिर्भर भारत' कहीं न कहीं संरक्षणवाद (Protectionism) को बढ़ावा दे रहा है। आयात पर शुल्क बढ़ाने से विदेशी प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जिससे भारतीय कंपनियों के आलसी होने और गुणवत्ता पर ध्यान न देने का खतरा बढ़ जाता है।
असली आत्मनिर्भरता बंद दरवाजों में नहीं, बल्कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करके और उन्हें हराकर हासिल होती है।
4. चीन फैक्टर: क्या हम सच में निर्भरता कम कर पाए?
यह अभियान चीन पर निर्भरता कम करने के लक्ष्य के साथ शुरू हुआ था। लेकिन आंकड़े एक मिली-जुली कहानी बताते हैं।
- आंकड़ों का खेल: कुछ क्षेत्रों में चीन से आयात कम हुआ है, लेकिन कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी, में हमारा आयात चीन से कम होने के बजाय बढ़ा है। यह दिखाता है कि वैश्विक सप्लाई चेन को बदलना रातों-रात संभव नहीं है।
5. निष्कर्ष: सफर अभी बाकी है
"Vocal for Local" एक आर्थिक नीति से कहीं ज़्यादा एक सफल सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन साबित हुआ है। इसने देश में स्वदेशी गौरव की भावना को जगाया है। PLI जैसी योजनाओं ने मैन्युफैक्चरिंग को सही दिशा दी है।
लेकिन, आर्थिक आत्मनिर्भरता का सफर अभी लंबा है। इसका लक्ष्य दुनिया से कटना नहीं, बल्कि दुनिया के लिए बनाना होना चाहिए। हमें संरक्षणवाद से बचते हुए अपने उद्योगों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाना होगा। जब 'मेड इन इंडिया' टैग सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि गुणवत्ता और भरोसे का प्रतीक बन जाएगा, तब 'आत्मनिर्भर भारत' का सपना वास्तव में साकार होगा।
💬 आपकी राय: क्या आप एक विदेशी ब्रांड के मुकाबले थोड़ा महंगा, लेकिन 'मेड इन इंडिया' प्रोडक्ट खरीदना पसंद करेंगे? आपकी प्राथमिकता क्या होगी - देश या क्वालिटी?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)
प्रश्न: 'आत्मनिर्भर भारत' और 'संरक्षणवाद' में क्या अंतर है?
उत्तर: 'आत्मनिर्भर भारत' का उद्देश्य देश की क्षमताओं को इतना बढ़ाना है कि वह अपनी जरूरतों को पूरा कर सके और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा हो सके। जबकि 'संरक्षणवाद' का अर्थ है आयात पर भारी टैक्स लगाकर या उसे प्रतिबंधित करके अपने घरेलू उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धा से बचाना, भले ही वे अकुशल हों।
प्रश्न: PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) स्कीम क्या है?
उत्तर: यह एक सरकारी योजना है जिसके तहत भारत में निर्मित उत्पादों की बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को वित्तीय प्रोत्साहन (कैश इंसेंटिव) दिया जाता है। इसका उद्देश्य कंपनियों को भारत में अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
प्रश्न: क्या 'Vocal for Local' अभियान सफल रहा है?
उत्तर: यह आंशिक रूप से सफल रहा है। एक सामाजिक आंदोलन के रूप में इसने स्वदेशी उत्पादों के प्रति जागरूकता पैदा की है। आर्थिक रूप से, इसने मोबाइल और रक्षा जैसे क्षेत्रों में सफलता दिखाई है, लेकिन कई क्षेत्रों में गुणवत्ता, कीमत और आयात पर निर्भरता की चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
प्रश्न: हम अभी भी चीन से इतना आयात क्यों कर रहे हैं?
उत्तर: क्योंकि चीन दुनिया का 'फैक्ट्री' है और उसने विशाल पैमाने पर उत्पादन करके अपनी लागत बहुत कम कर ली है। इलेक्ट्रॉनिक्स के छोटे पुर्जों से लेकर दवा के कच्चे माल तक, कई चीजों के लिए वैश्विक सप्लाई चेन चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। इस निर्भरता को खत्म करने में वर्षों का समय और भारी निवेश लगेगा।
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