OTT का रणक्षेत्र: रचनात्मकता की आज़ादी बनाम सेंसरशिप का 'ताला'?

OTT का रणक्षेत्र: रचनात्मकता की आज़ादी बनाम सेंसरशिप का 'ताला'?

लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025

एक दौर था जब पूरा परिवार एक साथ टीवी देखता था। आज हर किसी की जेब में अपना पर्सनल सिनेमा हॉल है - नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार। OTT (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म्स ने न सिर्फ हमारे मनोरंजन का तरीका बदला, बल्कि कहानियों को कहने का अंदाज़ भी बदल दिया। यहाँ वो कहानियाँ हैं जो सेंसर बोर्ड की कैंची से बचकर सीधे हमारे दिलों-दिमाग तक पहुँचती हैं। लेकिन इसी आज़ादी ने एक बड़ी बहस को जन्म दिया है: क्या OTT पर दिखाई जाने वाली हर चीज़ सही है? या इस पर लगाम कसने की ज़रूरत है? यह रचनात्मकता और नियंत्रण के बीच की एक जटिल लड़ाई है।


विषय-सूची (Table of Contents)

  1. OTT की क्रांति: जब टूटीं परंपरा की बेड़ियाँ
  2. सड़कों से लेकर संसद तक: क्यों उठी सेंसरशिप की मांग?
  3. सरकार का 'ताला': क्या हैं नए IT नियम 2021?
  4. 'चिलिंग इफ़ेक्ट': क्या डर के साये में है रचनात्मकता?
  5. क्या है समाधान: सेंसरशिप या स्वनियमन?
  6. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. OTT की क्रांति: जब टूटीं परंपरा की बेड़ियाँ

OTT की सबसे बड़ी ताकत उसकी बेबाकी रही है। 'सेक्रेड गेम्स' की कच्ची भाषा, 'मिर्ज़ापुर' की हिंसा, और 'पाताल लोक' के स्याह सच ने भारतीय समाज के उन पहलुओं को छुआ, जिन्हें मेनस्ट्रीम सिनेमा दिखाने से कतराता था।

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: इसने फिल्म निर्माताओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) का भरपूर उपयोग करने का मौका दिया।
  • नई प्रतिभाओं का उदय: कई नए एक्टर्स, डायरेक्टर्स और लेखकों को अपनी प्रतिभा दिखाने का एक शक्तिशाली मंच मिला, जो शायद बॉलीवुड में कभी नहीं मिलता।

2. सड़कों से लेकर संसद तक: क्यों उठी सेंसरशिप की मांग?

लेकिन हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। जैसे-जैसे कंटेंट बोल्ड होता गया, विरोध के स्वर भी तेज होते गए।

  • धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाएं: 'तांडव' जैसी वेब सीरीज पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप लगे, जिसके बाद देशव्यापी प्रदर्शन हुए और FIR दर्ज की गईं।
  • अश्लीलता और हिंसा: कई लोगों का मानना था कि OTT प्लेटफॉर्म्स पर अत्यधिक हिंसा और अश्लीलता परोसी जा रही है, जो भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ है।

3. सरकार का 'ताला': क्या हैं नए IT नियम 2021?

बढ़ते विवादों के बीच, सरकार 2021 में नए नियम लेकर आई, जिन्हें **सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021** कहा गया।

मुख्य प्रावधान: इन नियमों के तहत एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र बनाया गया:
  1. पहला स्तर: प्लेटफॉर्म खुद शिकायतों का निवारण करेगा।
  2. दूसरा स्तर: प्लेटफॉर्म्स का एक स्वनियामक निकाय (Self-regulatory body) होगा।
  3. तीसरा स्तर: एक सरकारी निरीक्षण समिति (Oversight Committee), जिसके पास कंटेंट को हटाने या संशोधित करने का आदेश देने का अधिकार होगा।

यहीं से असली बहस शुरू हुई। आलोचकों का कहना है कि यह तीसरा स्तर фактически सरकार के हाथ में सेंसरशिप का एक शक्तिशाली औजार है।

4. 'चिलिंग इफ़ेक्ट': क्या डर के साये में है रचनात्मकता?

कानून का सबसे बड़ा असर "चिलिंग इफ़ेक्ट" (Chilling Effect) के रूप में देखा जा रहा है।

"चिलिंग इफ़ेक्ट" का मतलब है कि जब कानून बहुत सख्त या अस्पष्ट होता है, तो लोग (यहाँ फिल्म निर्माता) कानूनी पचड़ों में पड़ने के डर से खुद ही संवेदनशील विषयों पर कंटेंट बनाने से बचने लगते हैं। वे सेल्फ-सेंसरशिप करने लगते हैं।
  • रचनात्मकता पर अंकुश: अब निर्माता कोई भी राजनीतिक या सामाजिक रूप से संवेदनशील कहानी कहने से पहले दस बार सोचते हैं। उन्हें डर रहता है कि कहीं उनकी सीरीज पर भी कोई FIR न हो जाए या उसे बैन न कर दिया जाए।

5. क्या है समाधान: सेंसरशिप या स्वनियमन?

तो रास्ता क्या है? एक तरफ बेलगाम रचनात्मकता है, तो दूसरी तरफ सरकारी नियंत्रण का खतरा।

  • स्वनियमन (Self-regulation): कई विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे अच्छा रास्ता स्वनियमन का है। इसमें प्लेटफॉर्म्स खुद एक मजबूत और पारदर्शी आचार संहिता बनाएं और उसका सख्ती से पालन करें।
  • बेहतर वर्गीकरण: कंटेंट का उम्र के हिसाब से (7+, 13+, 16+, 18+) बेहतर वर्गीकरण और मजबूत पैरेंटल कंट्रोल टूल्स देना एक प्रभावी समाधान हो सकता है। इससे दर्शक खुद यह तय कर सकते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को क्या देखना है।

असली सवाल यह है: क्या हमें एक 'नानी स्टेट' (Nanny State) चाहिए जो हमें बताए कि क्या देखना है और क्या नहीं, या हमें एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में अपने दर्शकों पर भरोसा करना चाहिए?


💬 आपकी राय: क्या आप OTT पर सरकारी सेंसरशिप का समर्थन करते हैं, या आपको लगता है कि यह रचनात्मकता के लिए खतरा है? कमेंट्स में अपनी बेबाक राय रखें!


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)

प्रश्न: भारत में OTT प्लेटफॉर्म्स के लिए कौन से नियम हैं?

उत्तर: भारत में OTT प्लेटफॉर्म्स को 'सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021' के तहत नियंत्रित किया जाता है। इसमें कंटेंट के वर्गीकरण और एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र का प्रावधान है।

प्रश्न: क्या भारत में OTT पर फिल्मों की तरह सेंसरशिप होती है?

उत्तर: सीधे तौर पर फिल्मों जैसी प्री-सेंसरशिप (रिलीज़ से पहले सर्टिफिकेट लेना) नहीं होती। लेकिन नए IT नियमों के तहत, सरकार की निरीक्षण समिति किसी शिकायत के आधार पर कंटेंट को हटाने या संशोधित करने का आदेश दे सकती है, जो एक तरह से पोस्ट-रिलीज़ सेंसरशिप का काम करता है।

प्रश्न: 'चिलिंग इफ़ेक्ट' (Chilling Effect) क्या है?

उत्तर: यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ कानून के डर से लोग अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा उपयोग करने से डरते हैं। OTT के संदर्भ में, इसका मतलब है कि निर्माता विवादों से बचने के लिए खुद ही अपनी कहानियों और किरदारों को सीमित कर देते हैं (सेल्फ-सेंसरशिप)।

प्रश्न: OTT सेंसरशिप का सबसे अच्छा विकल्प क्या हो सकता है?

उत्तर: कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकारी सेंसरशिप के बजाय मजबूत स्वनियमन (Self-regulation) और प्रभावी आयु-आधारित वर्गीकरण (Age-based classification) के साथ-साथ मजबूत पैरेंटल कंट्रोल टूल्स देना एक बेहतर लोकतांत्रिक समाधान है।

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