मोदी 3.0 का एक साल: उपलब्धियों, चुनौतियों और विवादों का संतुलित रिपोर्ट कार्ड
मोदी 3.0 का एक साल: उपलब्धियों, चुनौतियों और विवादों का संतुलित रिपोर्ट कार्ड
लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025
M S WORLD The WORLD of HOPE में आपका स्वागत है। आज हम एक बेहद महत्वपूर्ण विषय का निष्पक्ष और गहन विश्लेषण करेंगे: मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला साल। 9 जून 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरी बार शपथ ली, लेकिन इस बार की सरकार एक कमजोर बहुमत वाली गठबंधन सरकार है। आइए, पड़ताल करते हैं कि इस एक साल में वादों, दावों और ज़मीनी हकीकत के बीच कितना फासला रहा।
विषय-सूची (Table of Contents)
- राजनीतिक परिदृश्य: गठबंधन की मजबूरी और वैचारिक टकराव
- अर्थव्यवस्था: राहत की छोटी खुराक और गहरी चुनौतियाँ
- बुनियादी ढांचा: घोषणाओं की चमक और क्रियान्वयन की गति
- किसान-श्रमिक: असंतोष की सुलगती आग
- विदेश नीति और सुरक्षा: संयम और आंतरिक चुनौतियाँ
- निष्कर्ष: 1 साल का संतुलित लेखा-जोखा (तालिका)
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. राजनीतिक परिदृश्य: गठबंधन की मजबूरी और वैचारिक टकराव
2024 के चुनावी नतीजों ने भाजपा को अपने दम पर बहुमत से दूर कर दिया, जिससे सरकार का चरित्र पूरी तरह बदल गया।
- वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025: इस कार्यकाल का सबसे ज्वलंत मुद्दा वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 रहा। सरकार ने इसे भारतीय संसद से तो पारित करा लिया, लेकिन इस प्रक्रिया ने देश में एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक विभाजन पैदा कर दिया। बंगाल-त्रिपुरा में हुई हिंसा और राष्ट्रव्यापी विरोध ने सरकार के इस कदम को एकतरफा और विभाजनकारी के रूप में प्रस्तुत किया। विपक्ष ने इसे नागरिकों के मूल अधिकारों पर हमला बताया।
- गठबंधन का दबाव: TDP और JDU जैसे सहयोगी दलों का दबाव सरकार के हर बड़े फैसले पर साफ दिखा है। इससे सरकार की निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हुई है और उसे अपने मुख्य वैचारिक एजेंडे पर समझौता करना पड़ रहा है।
2. अर्थव्यवस्था: राहत की छोटी खुराक और गहरी चुनौतियाँ
आर्थिक मोर्चे पर सरकार ने मध्यम वर्ग को साधने की कोशिश की, लेकिन गहरी समस्याएं जस की तस हैं।
- बजट 2025-26: कर-मुक्त आय को ₹12.75 लाख तक बढ़ाना एक स्वागत योग्य कदम है। लेकिन, यह राहत बढ़ती महंगाई, घटती क्रय शक्ति और रिकॉर्ड बेरोजगारी के सामने अपर्याप्त लगती है।
- धीमे सुधार: Moody’s जैसी एजेंसियों ने स्पष्ट कहा है कि गठबंधन सरकार के कारण बड़े आर्थिक सुधारों की उम्मीद कम है। विनिवेश, भूमि और श्रम सुधार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है, जिससे निवेशकों में चिंता है।
3. बुनियादी ढांचा: घोषणाओं की चमक और क्रियान्वयन की गति
इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस जारी है, लेकिन सवाल परियोजनाओं के समय पर पूरा होने का है।
- नई परियोजनाएं: ₹3 लाख करोड़ की नई परियोजनाओं (वाढ़वन पोर्ट, ग्रामीण सड़कें) की घोषणा भविष्य के लिए उम्मीद जगाती है।
- चुनौतियाँ: कई पुरानी परियोजनाएं अभी भी भूमि अधिग्रहण और नौकरशाही की सुस्ती के कारण अटकी हुई हैं। बड़ी घोषणाओं और उनके ज़मीनी क्रियान्वयन के बीच एक बड़ा अंतर बना हुआ है।
4. किसान-श्रमिक: असंतोष की सुलगती आग
यह वो मोर्चा है, जहाँ सरकार सबसे ज्यादा विफल नज़र आती है।
- सरकारी दावे बनाम हकीकत: सरकार ने PM किसान निधि के तहत ₹20,000 करोड़ जारी किए। लेकिन यह राशि किसानों की MSP की कानूनी गारंटी, बढ़ती लागत और कर्ज की मांग के सामने ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
- राष्ट्रव्यापी भारत बंद: 9 जुलाई को हुआ "भारत बंद" केवल एक सांकेतिक विरोध नहीं था, बल्कि यह नए श्रम सुधारों, निजीकरण और सरकार की किसान-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक व्यापक गुस्से का प्रतीक था। तूर दाल की गिरती कीमतों ने सरकार की कृषि नीति की पोल खोल दी।
5. विदेश नीति और सुरक्षा: संयम और आंतरिक चुनौतियाँ
विदेश नीति में संयम दिखा है, लेकिन आंतरिक सुरक्षा पर सवाल उठे हैं।
- संतुलित दृष्टिकोण: सरकार ने ASEAN और अमेरिका के साथ रिश्ते मजबूत किए हैं, जो सराहनीय है।
- आंतरिक सुरक्षा: पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने गृह मंत्रालय की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। गठबंधन की राजनीति के कारण, सरकार पहले के भारत-पाक संघर्षों की तरह कोई कठोर कदम उठाने से बचती दिखी, जिसे विपक्ष ने कमजोरी के रूप में पेश किया।
6. निष्कर्ष: 1 साल का संतुलित लेखा-जोखा (तालिका)
क्षेत्र | सकारात्मक पहलू (उपलब्धियाँ) | नकारात्मक पहलू (चुनौतियाँ और विफलताएं) |
---|---|---|
राजनीति | गठबंधन को एक साल तक चलाना। | सामाजिक ध्रुवीकरण, वैचारिक टकराव, निर्णय लेने में देरी। |
अर्थव्यवस्था | मध्यम वर्ग को मामूली कर राहत। | उच्च बेरोजगारी, महंगाई, बड़े आर्थिक सुधारों का अभाव। |
किसान/श्रमिक | PM किसान निधि की किश्त जारी। | व्यापक असंतोष, MSP पर वादाखिलाफी, भारत बंद। |
सुरक्षा | संतुलित विदेश नीति। | आंतरिक सुरक्षा में चूक (पहलगाम), कठोर निर्णय लेने में हिचकिचाहट। |
🤔 आपके लिए प्रश्न:
- क्या सरकार का पहला साल उम्मीदों पर खरा उतरा है या यह निराशाजनक रहा?
- क्या गठबंधन की राजनीति भारत के विकास में बाधा बन रही है?
अपने बेबाक विचार नीचे कमेंट में लिखें और इस बहस को आगे बढ़ाएं!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)
प्रश्न: मोदी 3.0 को पिछले दो कार्यकालों से कमजोर क्यों माना जा रहा है?
उत्तर: क्योंकि यह एक गठबंधन सरकार है, जिसमें भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं है। सरकार को फैसले लेने के लिए TDP और JDU जैसे सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उसकी निर्णय लेने की स्वतंत्रता और वैचारिक कठोरता कम हो गई है।
प्रश्न: वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर मुख्य विवाद क्या है?
उत्तर: मुख्य विवाद यह है कि विपक्ष और कई सामाजिक संगठन इसे एक समुदाय विशेष को लक्षित करने वाला और देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के खिलाफ मानते हैं। उनका आरोप है कि इसे बिना पर्याप्त बहस और आम सहमति के लागू किया गया, जिससे यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
प्रश्न: क्या सरकार रोजगार और महंगाई के मोर्चे पर सफल हुई है?
उत्तर: आंकड़ों और ज़मीनी हकीकत के अनुसार, सरकार इस मोर्चे पर चुनौतीपूर्ण स्थिति में है। रोजगार के अवसर सीमित हैं और महंगाई लगातार एक बड़ी चिंता बनी हुई है, जिससे आम आदमी का बजट प्रभावित हो रहा है। कर राहत जैसे कदम इन बड़ी समस्याओं के सामने नाकाफी साबित हो रहे हैं।
प्रश्न: गठबंधन सरकार का भारत की विदेश नीति पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर: गठबंधन सरकार के कारण विदेश नीति में एक संयम और सतर्कता आई है। सरकार को कोई भी बड़ा या आक्रामक कदम उठाने से पहले अपने सहयोगियों की राय लेनी पड़ती है। इसके परिणामस्वरूप, विशेषकर पाकिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर, सरकार की प्रतिक्रिया पहले की तुलना में अधिक संतुलित और कूटनीतिक रही है।
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