ईरान-इजराइल संघर्ष: दुश्मनी की कहानी, 'शैडो वॉर' और भविष्य का खतरा

ईरान-इजराइल संघर्ष: दुश्मनी की कहानी, 'शैडो वॉर' और भविष्य का खतरा

लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025

मध्य पूर्व की अस्थिर बिसात पर, ईरान और इज़राइल का संघर्ष सिर्फ दो देशों की दुश्मनी नहीं, बल्कि एक ऐसा ज्वालामुखी है जिसके लावे का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। यह एक ऐसा संघर्ष है जो सीधे मैदान में कम और परछाइयों में ज़्यादा लड़ा जाता है। आइए, इस जटिल दुश्मनी की जड़ों, इसके खतरनाक वर्तमान और अनिश्चित भविष्य को परत-दर-परत समझते हैं।


विषय-सूची (Table of Contents)

  1. जब दोस्त हुआ करते थे ईरान-इज़राइल: दोस्ती से दुश्मनी तक का सफर
  2. 'शैडो वॉर' (परोक्ष युद्ध): जब परछाइयों में लड़ी जाती है जंग
  3. परमाणु कार्यक्रम: संघर्ष का सबसे खतरनाक मोड़
  4. बदलता मध्य पूर्व: अब्राहम अकॉर्ड्स और नए समीकरण
  5. निष्कर्ष: क्या शांति संभव है या तीसरा विश्व युद्ध करीब है?
  6. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. जब दोस्त हुआ करते थे ईरान-इज़राइल: दोस्ती से दुश्मनी तक का सफर

यह जानकर हैरानी होती है कि एक समय था जब ईरान और इज़राइल करीबी दोस्त थे। 1979 से पहले, ईरान पर शाह का शासन था और दोनों देश गैर-अरब ताकतें होने के कारण स्वाभाविक सहयोगी थे।

  • रणनीतिक साझेदारी: 1950-70 के दशकों में, दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापारिक, सैन्य और खुफिया संबंध थे। इज़राइल को ईरान से तेल मिलता था, और ईरान को इज़राइल से सैन्य तकनीक।
  • 1979 की इस्लामी क्रांति: सब कुछ 1979 में बदल गया। अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में हुई इस्लामी क्रांति ने शाह को उखाड़ फेंका। यह सिर्फ एक राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि एक वैचारिक भूचाल था। खुमैनी की नई सरकार ने इज़राइल को "इस्लाम का दुश्मन" और "शैतानी ताकत" घोषित कर दिया और सारे रिश्ते तोड़ दिए। यहीं से दोस्ती की कहानी, दुश्मनी की खूनी इबारत में बदल गई।

2. 'शैडो वॉर' (परोक्ष युद्ध): जब परछाइयों में लड़ी जाती है जंग

1979 के बाद से ईरान और इज़राइल ने कभी सीधी जंग नहीं लड़ी, लेकिन वे एक-दूसरे को कमजोर करने के लिए लगातार एक "शैडो वॉर" लड़ रहे हैं।

ईरान की रणनीति: ईरान 'एक्सिस ऑफ़ रेजिस्टेंस' (प्रतिरोध की धुरी) के माध्यम से काम करता है। वह लेबनान में हिजबुल्लाह, गाजा में हमास और यमन में हूती विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी समूहों को हथियार और पैसा देकर इज़राइल को चारों ओर से घेरने की कोशिश करता है।
  • इज़राइल का जवाब: इज़राइल की रणनीति सीधी और घातक है। वह सीरिया में ईरानी ठिकानों पर हवाई हमले करता है, ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमयी हत्याएं करवाता है, और स्टक्सनेट (Stuxnet) जैसे विनाशकारी साइबर हमलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुँचाता है।

3. परमाणु कार्यक्रम: संघर्ष का सबसे खतरनाक मोड़

इस पूरे संघर्ष का सबसे विस्फोटक पहलू ईरान का परमाणु कार्यक्रम है।

  • इज़राइल का डर: इज़राइल का मानना है कि अगर ईरान ने परमाणु बम बना लिया, तो यह उसके अस्तित्व के लिए सीधा खतरा होगा। वह किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकना चाहता है, भले ही इसके लिए सीधे सैन्य हमला ही क्यों न करना पड़े।
  • JCPOA समझौता और उसका अंत: 2015 में ईरान और दुनिया की 6 महाशक्तियों के बीच परमाणु समझौता (JCPOA) हुआ था, जिससे तनाव कम हुआ। लेकिन 2018 में अमेरिका के इस समझौते से हटने के बाद यह लगभग खत्म हो गया और ईरान ने फिर से यूरेनियम संवर्धन तेज कर दिया, जिससे युद्ध का खतरा पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गया है।

4. बदलता मध्य पूर्व: अब्राहम अकॉर्ड्स और नए समीकरण

हाल के वर्षों में मध्य पूर्व की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है, जिसने इस संघर्ष को नया मोड़ दिया है।

अब्राहम अकॉर्ड्स (Abraham Accords): ईरान के बढ़ते प्रभाव के डर से, सऊदी अरब, UAE और बहरीन जैसे प्रमुख सुन्नी अरब देशों ने इज़राइल के साथ अपने रिश्ते सामान्य कर लिए हैं। यह ईरान के लिए एक बड़ा रणनीतिक झटका है, क्योंकि अब इज़राइल और अरब देश मिलकर ईरान के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बना रहे हैं।
  • अमेरिका की भूमिका: अमेरिका हमेशा से इज़राइल का सबसे बड़ा संरक्षक रहा है। वह इज़राइल को सैन्य और कूटनीतिक समर्थन देता है, जबकि ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसे कमजोर करने की कोशिश करता है।

5. निष्कर्ष: क्या शांति संभव है या तीसरा विश्व युद्ध करीब है?

2025 में ईरान-इज़राइल संघर्ष एक ऐसे बिंदु पर है, जहाँ एक छोटी सी चिंगारी भी पूरे मध्य पूर्व को आग में झोंक सकती है। यह अब सिर्फ दो देशों की लड़ाई नहीं, बल्कि शिया बनाम सुन्नी, लोकतंत्र बनाम धर्मतंत्र और क्षेत्रीय प्रभुत्व की एक जटिल जंग बन चुकी है।

शांति की संभावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आतीं क्योंकि दोनों पक्षों के बीच अविश्वास और वैचारिक मतभेद बहुत गहरे हैं। जब तक ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से पारदर्शी नहीं बनाता और इज़राइल के खिलाफ प्रॉक्सी वॉर बंद नहीं करता, और जब तक इज़राइल को अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस होता रहेगा, तब तक यह 'शैडो वॉर' जारी रहेगा, और एक पूर्ण युद्ध का खतरा हमेशा मंडराता रहेगा।


💬 आपकी राय: क्या आपको लगता है कि इस संघर्ष का कोई शांतिपूर्ण समाधान संभव है, या यह एक बड़े युद्ध की ओर बढ़ रहा है? अपनी राय कमेंट्स में जरूर बताएं!


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)

प्रश्न: ईरान और इज़राइल पहले दोस्त क्यों थे?

उत्तर: 1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, दोनों देशों के साझा हित थे। वे दोनों गैर-अरब देश थे और अपने आस-पास के अरब राष्ट्रों से खतरा महसूस करते थे। इस साझा डर ने उन्हें एक-दूसरे का स्वाभाविक रणनीतिक सहयोगी बना दिया था।

प्रश्न: 'शैडो वॉर' (Shadow War) का क्या मतलब है?

उत्तर: शैडो वॉर एक ऐसा संघर्ष है जिसमें दो देश सीधे तौर पर एक-दूसरे से नहीं लड़ते, बल्कि प्रॉक्सी समूहों (जैसे हिजबुल्लाह), साइबर हमलों, खुफिया ऑपरेशनों और लक्षित हत्याओं के माध्यम से एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाते हैं। यह एक अप्रत्यक्ष युद्ध होता है।

प्रश्न: ईरान का परमाणु कार्यक्रम इतना विवादास्पद क्यों है?

उत्तर: ईरान का दावा है कि उसका कार्यक्रम शांतिपूर्ण ऊर्जा उद्देश्यों के लिए है, लेकिन इज़राइल और पश्चिमी देशों को डर है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु बम बना रहा है। अगर ईरान परमाणु शक्ति बन जाता है, तो यह मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल देगा और इज़राइल इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है।

प्रश्न: अब्राहम अकॉर्ड्स ने ईरान-इज़राइल संघर्ष को कैसे प्रभावित किया है?

उत्तर: अब्राहम अकॉर्ड्स के तहत UAE और बहरीन जैसे अरब देशों ने इज़राइल के साथ संबंध सामान्य कर लिए हैं। इसका मुख्य कारण ईरान का साझा डर है। इस समझौते ने ईरान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया है और इज़राइल को ईरान के खिलाफ एक नया अरब मोर्चा मिल गया है।

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