भारत की नई रणनीतिक बिसात: 2025 में बदलती वैश्विक तस्वीर का विश्लेषण
भारत की नई रणनीतिक बिसात: 2025 में बदलती वैश्विक तस्वीर का विश्लेषण
लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025
21वीं सदी के इस दशक के मध्य में, भारत एक महत्वपूर्ण चौराहे पर खड़ा है। एक तरफ 'विश्वगुरु' बनने की आकांक्षा है, तो दूसरी तरफ भू-राजनीतिक (Geopolitical) चुनौतियां मुँह बाए खड़ी हैं। 2025 का भारत अब दुनिया को सिर्फ एक दर्शक की तरह नहीं देखता, बल्कि वैश्विक बिसात पर एक सक्रिय खिलाड़ी बन चुका है। आइए, इस बदलती रणनीतिक तस्वीर की गहराइयों को समझते हैं।
विषय-सूची (Table of Contents)
- रणनीतिक स्वायत्तता: वैश्विक कूटनीति का नया अध्याय
- सुरक्षा का 'आत्मनिर्भर' कवच और उसकी सीमाएं
- आंतरिक राजनीति: सहकारी संघवाद बनाम टकराव
- डिजिटल ब्रह्मास्त्र: अवसर और खतरे
- भारत के समक्ष नई और पुरानी चुनौतियाँ
- भविष्य का भारत: नेतृत्व की राह और बाधाएं
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. रणनीतिक स्वायत्तता: वैश्विक कूटनीति का नया अध्याय
2025 में भारत की विदेश नीति का मूलमंत्र 'गुटनिरपेक्षता' से बदलकर 'बहु-संरेखण' (Multi-alignment) हो गया है। भारत अब किसी एक गुट में बंधने के बजाय अपने हितों के अनुसार सबसे संबंध बना रहा है।
- संतुलन की कला: एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व वाले QUAD और I2U2 में भारत एक प्रमुख भागीदार है, तो दूसरी तरफ रूस के साथ अपने ऐतिहासिक रक्षा और ऊर्जा संबंधों को बनाए हुए है। चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद BRICS और SCO जैसे मंचों पर संवाद जारी है।
- वैश्विक मंच पर नेतृत्व: G20 की अध्यक्षता के बाद, भारत ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ बनने में सफलता पाई है। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत का रुख अब दुनिया सुनती है। UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग को भी नए सिरे से बल मिला है।
- सॉफ्ट पावर का उपयोग: सरकार पद्म पुरस्कारों जैसे सम्मानों के माध्यम से भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत कर रही है।
- चुनौती: यह संतुलन साधना किसी कूटनीतिक रस्सी पर चलने जैसा है, जहाँ एक भी गलत कदम भारत को किसी एक खेमे में धकेल सकता है।
2. सुरक्षा का 'आत्मनिर्भर' कवच और उसकी सीमाएं
भारत की सुरक्षा रणनीति अब रक्षात्मक के बजाय निवारक (Deterrent) और आक्रामक हो रही है।
- आधुनिकीकरण: चीन और पाकिस्तान से दो-मोर्चों पर खतरे को देखते हुए सेना का आधुनिकीकरण तेज किया गया है। साइबर सुरक्षा और स्पेस वॉरफेयर जैसे नए डोमेन में भी निवेश बढ़ा है।
- आत्मनिर्भरता की सीमा: हालाँकि प्रगति हुई है, लेकिन भारत आज भी लड़ाकू जेट इंजन, एडवांस सबमरीन और सेमीकंडक्टर जैसी महत्वपूर्ण तकनीकों के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। आत्मनिर्भरता का सफर अभी लंबा और चुनौतियों से भरा है। इन चुनौतियों से निपटना सीधे तौर पर गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की नीतियों पर निर्भर करता है।
3. आंतरिक राजनीति: सहकारी संघवाद बनाम टकराव
2024 के चुनावों के बाद उभरी गठबंधन सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों को फिर से परिभाषित किया है।
- क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत: राष्ट्रीय नीति निर्माण में अब क्षेत्रीय दलों की भूमिका निर्णायक हो गई है। किसी भी बड़े विधायी बदलाव के लिए, जैसे कि भारतीय संसद में कोई कानून पारित करना, केंद्र को राज्यों और सहयोगी दलों के साथ व्यापक सहमति बनानी पड़ रही है।
- टकराव की स्थिति: वहीं, कई विपक्षी शासित राज्यों और केंद्र के बीच वित्तीय संसाधनों, राज्यपाल की भूमिका और केंद्रीय एजेंसियों के उपयोग को लेकर टकराव बढ़ा है, जो देश के संघीय ढांचे के लिए एक गंभीर चुनौती है।
4. डिजिटल ब्रह्मास्त्र: अवसर और खतरे
डिजिटल इंडिया अब सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।
- शासन में दक्षता: UPI ने वित्तीय लेन-देन में क्रांति ला दी है, और e-governance से प्रशासनिक दक्षता बढ़ी है।
- नई चुनौतियाँ: इस डिजिटल क्रांति के साथ साइबर हमले, डेटा संप्रभुता (Data Sovereignty) और डिजिटल डिवाइड (अमीर-गरीब के बीच तकनीकी अंतर) जैसे खतरे भी बढ़े हैं। चीन जैसे देशों द्वारा डेटा का हथियार के रूप में उपयोग एक निरंतर चिंता का विषय है।
5. भारत के समक्ष नई और पुरानी चुनौतियाँ
भारत की राह में कई बाधाएं हैं:
- बाहरी चुनौतियाँ: चीन का बढ़ता सैन्य और आर्थिक दबदबा सबसे बड़ी चुनौती है। पाकिस्तान के साथ संघर्ष और आतंकवाद का खतरा हमेशा बना रहता है।
- आंतरिक चुनौतियाँ: सामाजिक असंतोष, बढ़ती आर्थिक असमानता, और जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली प्राकृतिक आपदाएं देश की स्थिरता और विकास को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं।
6. भविष्य का भारत: नेतृत्व की राह और बाधाएं
2025 का भारत एक ऐसे मोड़ पर है, जहाँ उसके पास एक वैश्विक महाशक्ति बनने की क्षमता भी है और पुरानी समस्याओं में उलझे रहने का खतरा भी।
भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपनी आर्थिक वृद्धि को कैसे समावेशी बनाता है, अपनी आंतरिक राजनीतिक स्थिरता कैसे बनाए रखता है, और अपनी कूटनीतिक चपलता का उपयोग कैसे करता है।
यह स्पष्ट है कि भारत आगे बढ़ रहा है, लेकिन क्या यह बदलाव उपमहाद्वीप में शांति और शक्ति का एक नया युग लाएंगे, या हमें और संघर्षों का सामना करना पड़ेगा? इसका उत्तर भारत के नीति निर्माताओं और नागरिकों के सामूहिक विवेक पर निर्भर करेगा।
💬 आपकी राय: भारत की बदलती रणनीतिक दिशा के बारे में आप क्या सोचते हैं? आपके अनुसार, भारत की सबसे बड़ी चुनौती क्या है? अपने विचार कमेंट्स में साझा करें!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions)
प्रश्न: 'बहु-संरेखण' (Multi-alignment) का क्या अर्थ है और यह गुटनिरपेक्षता से कैसे अलग है?
उत्तर: गुटनिरपेक्षता का अर्थ था किसी भी प्रमुख शक्ति गुट (अमेरिका या सोवियत संघ) में शामिल न होना। जबकि, बहु-संरेखण एक सक्रिय नीति है, जिसका अर्थ है अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर विभिन्न देशों और गुटों के साथ एक साथ कई साझेदारियाँ करना, भले ही वे गुट आपस में प्रतिस्पर्धी हों।
प्रश्न: रक्षा में 'आत्मनिर्भर भारत' की सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उत्तर: सबसे बड़ी चुनौती क्रिटिकल टेक्नोलॉजी (जैसे- लड़ाकू विमानों के लिए जेट इंजन) में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। भले ही भारत ने सिस्टम इंटीग्रेशन में प्रगति की है, लेकिन कई महत्वपूर्ण और उच्च-तकनीकी कंपोनेंट्स के लिए हम अभी भी दूसरे देशों पर निर्भर हैं।
प्रश्न: गठबंधन सरकार भारत की विदेश और सुरक्षा नीति को कैसे प्रभावित कर रही है?
उत्तर: गठबंधन सरकार के कारण विदेश और सुरक्षा नीति में अधिक सावधानी और आम सहमति बनाने पर जोर दिया जा रहा है। सरकार को कोई भी बड़ा या जोखिम भरा कदम उठाने से पहले अपने सहयोगी दलों के राजनीतिक हितों का भी ध्यान रखना पड़ता है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
प्रश्न: भारत के लिए सबसे बड़ा दीर्घकालिक रणनीतिक खतरा क्या है?
उत्तर: अधिकांश विशेषज्ञों के अनुसार, चीन का बढ़ता सैन्य, आर्थिक और तकनीकी प्रभुत्व भारत के लिए सबसे बड़ा दीर्घकालिक रणनीतिक खतरा है। यह न केवल सीमाओं पर तनाव पैदा करता है, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र और भारत के पड़ोस में भी उसके प्रभाव को चुनौती देता है।
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