भारत और जलवायु परिवर्तन: दुनिया का रक्षक या अपनी मजबूरियों का शिकार?

भारत और जलवायु परिवर्तन: दुनिया का रक्षक या अपनी मजबूरियों का शिकार? - DeshSamvad
भारत और जलवायु परिवर्तन - विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन

भारत और जलवायु परिवर्तन: दुनिया का रक्षक या अपनी मजबूरियों का शिकार?

लेखक: M S WORLD The WORLD of HOPE | 📅 तिथि: 12 जुलाई 2025

हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती क्या है? इसका जवाब है - जलवायु परिवर्तन। एक तरफ हिमालय के पिघलते ग्लेशियर, तो दूसरी तरफ समुद्र के बढ़ते जलस्तर से डूबते तटीय शहर। यह सिर्फ एक पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व का प्रश्न है। इस वैश्विक संकट के केंद्र में भारत एक अनोखी स्थिति में खड़ा है - एक ऐसा देश जिस पर अपनी करोड़ों की आबादी को गरीबी से निकालने का दबाव है, और साथ ही दुनिया को बचाने की नैतिक जिम्मेदारी भी। आइए, इस ज़रूरी संवाद की परतों को खोलते हैं।



1. भारत की दोहरी चुनौती: विकास की जरूरत और पर्यावरण की जिम्मेदारी

भारत की स्थिति को समझना महत्वपूर्ण है। भले ही कुल उत्सर्जन के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर हो, लेकिन प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (per capita emission) के मामले में यह विकसित देशों की तुलना में बहुत पीछे है।

  • संवेदनशीलता: हमारी कृषि-निर्भर अर्थव्यवस्था, लंबी तटरेखा और घनी आबादी हमें जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील बनाती है। सूखा, बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाएं हमारी अर्थव्यवस्था और करोड़ों लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करती हैं।
  • विकास का दबाव: भारत को अभी भी अपनी बड़ी आबादी के लिए ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और नौकरियों का निर्माण करना है, जिसके लिए ऊर्जा की भारी खपत होगी।

2. वैश्विक मंच पर भारत: 'पंचामृत' वादे और 'जलवायु न्याय' की मांग

भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में नेतृत्व की भूमिका निभाई है, लेकिन अपनी शर्तों पर।

पेरिस समझौता और COP26: भारत ने पेरिस समझौते के तहत महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे। ग्लासगो में हुए COP26 शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को "पंचामृत" का तोहफा दिया, जिसमें 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का ऐतिहासिक वादा भी शामिल था।
  • जलवायु न्याय (Climate Justice): भारत लगातार "जलवायु न्याय" की वकालत करता रहा है। इसका सिद्धांत है कि जिन विकसित देशों ने ऐतिहासिक रूप से सबसे ज़्यादा प्रदूषण फैलाया है, उन्हें जलवायु संकट से निपटने के लिए सबसे ज़्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए और विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी मदद देनी चाहिए।

3. सौर क्रांति: जब भारत ने दुनिया को रास्ता दिखाया

भारत की जलवायु कार्रवाई का सबसे चमकता सितारा नवीकरणीय ऊर्जा, खासकर सौर ऊर्जा है।

  • अभूतपूर्व वृद्धि: भारत दुनिया के सबसे सस्ते सौर ऊर्जा उत्पादकों में से एक बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance) का मुख्यालय भारत में होना इस क्षेत्र में उसके वैश्विक नेतृत्व का प्रमाण है।
  • लक्ष्य: 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों में से एक है।

4. सिर्फ सौर ऊर्जा ही काफी नहीं: भारत के सामने खड़ी चुनौतियाँ

तस्वीर का दूसरा पहलू चुनौतियों से भरा है:

  • कोयले पर निर्भरता: भारत की ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी कोयले से आता है। लाखों लोगों का रोजगार और देश की ऊर्जा सुरक्षा कोयले से जुड़ी है, जिससे इसे एकदम से छोड़ना लगभग असंभव है।
  • कृषि संकट: जलवायु परिवर्तन का सबसे पहला और गहरा असर हमारी कृषि पर पड़ रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा है।
  • शहरी प्रदूषण: हमारे शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं, जो एक गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है।

5. LiFE मिशन: दुनिया को भारत का नया मंत्र

भारत ने दुनिया को एक नया विचार दिया है - LiFE (Lifestyle for Environment) मिशन। इसका मानना है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई सिर्फ सरकारों की नहीं, बल्कि हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।

यह मिशन 'उपयोग करो और फेंको' (Use and Throw) वाली संस्कृति की जगह 'सतत जीवनशैली' अपनाने पर जोर देता है। यह जलवायु परिवर्तन की बहस को व्यक्तिगत जिम्मेदारी से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास है। हर साल विश्व पर्यावरण दिवस पर इस मिशन को और बल मिलता है।

6. निष्कर्ष: 'कार्बन' और 'करुणा' के बीच संतुलन की राह

भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। वह जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा पीड़ित है, लेकिन अपने आकार और विकास की गति के कारण समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। भारत की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह 'कार्बन' (विकास की ऊर्जा जरूरतें) और 'करुणा' (अपने सबसे कमजोर नागरिकों और ग्रह की रक्षा) के बीच संतुलन कैसे साधता है।

यह लड़ाई सिर्फ नीतियों और टेक्नोलॉजी की नहीं, बल्कि मानसिकता की भी है। और LiFE मिशन के साथ, भारत ने सही दिशा में एक मजबूत कदम बढ़ाया है।


💬 आपकी राय क्या है?

क्या भारत 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल कर पाएगा? आपके अनुसार, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक आम नागरिक क्या कर सकता है? अपने विचार कमेंट्स में साझा करें!

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न: 'नेट-जीरो' उत्सर्जन का क्या मतलब है?

उत्तर: नेट-जीरो का मतलब कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म करना नहीं है। इसका अर्थ है कि जितना भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हो, उसे वायुमंडल से कृत्रिम (टेक्नोलॉजी) या प्राकृतिक (जैसे जंगल लगाना) तरीकों से सोख लिया जाए, ताकि कुल उत्सर्जन शून्य हो जाए।

प्रश्न: 'जलवायु न्याय' (Climate Justice) क्या है?

उत्तर: यह एक सिद्धांत है जो कहता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की जिम्मेदारी सभी देशों की बराबर नहीं है। जिन विकसित देशों ने औद्योगिक क्रांति के समय से सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाया है, उन्हें इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकानी चाहिए और विकासशील देशों को स्वच्छ टेक्नोलॉजी अपनाने के लिए वित्तीय मदद देनी चाहिए।

प्रश्न: भारत कोयले का उपयोग पूरी तरह से बंद क्यों नहीं कर सकता?

उत्तर: इसके कई कारण हैं: 1) भारत की ऊर्जा सुरक्षा काफी हद तक कोयले पर निर्भर है। 2) कोयला उद्योग से करोड़ों लोगों को सीधे और परोक्ष रूप से रोजगार मिलता है। 3) नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर और पवन) अभी तक 24x7 विश्वसनीय बिजली प्रदान करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। इसलिए, यह एक क्रमिक प्रक्रिया होगी।

प्रश्न: 'पंचामृत' क्या है जो भारत ने COP26 में प्रस्तुत किया?

उत्तर: 'पंचामृत' भारत द्वारा COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए पांच जलवायु लक्ष्यों का एक समूह है। इसमें शामिल हैं: 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता, 2030 तक 50% ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से, 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी, 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना, और 2070 तक नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करना।

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